Sri Krishna Janmashtami 2018: कृष्ण जन्माष्टमी आ गई है और देशभर में इसकी धूम है। आधी रात को होने वाले कृष्ण महोत्सव की तैयारियां कर ली गई हैं। मंदिरों में जहां कृष्ण के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी है। वहीं दही हांड़ी के लिए टोलियों ने तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। कृष्ण जन्माष्टमी यूं तो पूरे भारत में मनाई जाती है, पर दही हांडी सभी स्थानों पर अधिक प्रचलित नहीं है। यह सबसे अधिक लोकप्रिय महाराष्ट्र में है। दही हांडी के कार्यक्रम जन्माष्टमी के दिन आयोजित किये जाते हैं और युवा टोलियां इस उत्सव में बड़े उत्साह से भाग लेती हैं।
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जनमाष्टमी पर क्यों मनाई जाती है दही हांडी
दही हांडी के इतिहास की बात करें तो प्रचलित कृष्ण लीलाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण अपने सखाओं के साथ आस-पड़ोस के घरों से माखन और दही चुराया करते थे। कृष्ण की बदमाशियों से परेशान हो महिलाओं ने माखन और दही मटके में रख ऊपर रखने लगी। इसके बाद कृष्ण अपने सभी मित्रों के साथ मिलकर एक मानवीय पिरामिड बनाते थे और उनके ऊपर चढ़ कर मटके से दही और माखन खाते थे। वास्तव में पूरा वृंदावन उनकी इन लीलाओं का आनंद उठाया करता था। यही कारण है कि लोग उन्हें बड़े प्यार से माखनचोर कह कर पुकारने लगे और दही हांडी फोड़ने वाले बच्चों को गोविंदा कहा जाने लगा।
क्या है दही हांडी का इतिहास
मान्यता के अनुसार वर्तमान में मनाई जाने वाली दही हांडी का इतिहास हमें नवी मुंबई के घणसोली गांव में मिलता है। कहा जाता है कि इस गांव में दही हांडी आज से लगभग 110 वर्ष पहले 1907 में सबसे पहले मनाई गई थी। तब से यह परंपरा चली आ रही है और यहां से अलग-अलग क्षेत्रों में इसका विस्तार हुआ है। यहां के हनुमान मंदिर में जन्माष्टमी से एक हफ्ते पहले उत्सव मनाए जाने लगते हैं इसके बाद यह उत्सव दही हांड़ी से साथ समाप्त होते हैं। यही कारण है कि श्री कृष्ण के जन्मदिन पर दही हांडी फोड़ने की प्रथा चली आ रही है।
क्या होता है दही हांडी में
दही-हांडी प्रतियोगिता में युवाओं का एक समूह पिरामिड बनाता है, जिसमें एक युवक ऊपर चढ़कर ऊंचाई पर लटकी हांडी, जिसमें दही होता है, उसे फोड़ता है। ये गोविंदा बनकर इस खेल में भाग लेते हैं। इस दौरान कई जगहों पर प्रतियोगिताओं का भी आयोजन होता है। प्रतिभागियों को 9 स्तरों से नीचे आमतौर पर मिलकर एक पिरामिड बनाते हैं और हांडी को तोड़ने के लिए 3 मौके दिये जाते हैं। इन प्रतियोगिताओं में जीतने वाली टोली को इनाम में पैसे, मिठाई और उपहार दिए जाते हैं। विभिन्न संगठन दही हांडी में लाखों तक का इनाम देते है। साथ ही विभिन्न जगहों पर दही हांडी से मिलने वाला पैसा सामाजिक कार्यों में दान दिया जाता है। दही हांडी आज के दौर में इतनी प्रचलित हो चली है कि बॉलीवुड में इस पर अनेक गाने बन चुके हैं। जिनकी ताल पर आज हजारों लोग झूमते हैं।
बता दें कि इस उत्सव को मनाने की तैयारियां 3 महीने पहले से ही शुरू हो जाती हैं। पिरामिड बनाने का अभ्यास भी 3 महीने पहले से शुरू हो जाता है। इसमें भाग लेने वाले गोविंद अपने आप को फिट रखने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। वहीं पिरामिड बनाने से पहले सभी जरूरी बातों का ध्यान रखा जाता है। किसी भी तरह की मेडिकल एमरजेंसी से निपटने के मौके पर एंबुलेंस रहती है।
देशभर में प्रचलित है यहां कि दही हांडी
मुंबई के कुछ प्रमुख गोविंदा पथकों में ऐरोली कोलीवाडा मंडल, ओमसाईं गोविंदा पथक, शिव गर्जना गोविंदा पथक, गोठिवली गोविंदा पथक हैं। यह टोलियां न केवल यहां बल्कि देशभर में काफी प्रचलित हैं। मुंबई ही नहीं, ठाणे, नवी मुंबई, डोंबिवली, कल्याण, उल्हासनगर, मीरा-भाईंदर, वसई-विरार तक दही हांडी उत्सव का आयोजन होता है। मुंबई के वरली में विशेष इंतजाम रहते हैं, तो उपनगरीय इलाकों में घाटकोपर, चेंबूर, अंधेरी, बोरिवली में गोविंदा टोलियों का स्वागत किया जाता है। यदि आप भी दही हांडी का आनंद लेना चाहते हैं तो इन जगहों पर पहुंच कर इनका आनंद ले सकते हैं।
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जनमाष्टमी पर क्यों मनाई जाती है दही हांडी
दही हांडी के इतिहास की बात करें तो प्रचलित कृष्ण लीलाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण अपने सखाओं के साथ आस-पड़ोस के घरों से माखन और दही चुराया करते थे। कृष्ण की बदमाशियों से परेशान हो महिलाओं ने माखन और दही मटके में रख ऊपर रखने लगी। इसके बाद कृष्ण अपने सभी मित्रों के साथ मिलकर एक मानवीय पिरामिड बनाते थे और उनके ऊपर चढ़ कर मटके से दही और माखन खाते थे। वास्तव में पूरा वृंदावन उनकी इन लीलाओं का आनंद उठाया करता था। यही कारण है कि लोग उन्हें बड़े प्यार से माखनचोर कह कर पुकारने लगे और दही हांडी फोड़ने वाले बच्चों को गोविंदा कहा जाने लगा।
क्या है दही हांडी का इतिहास
मान्यता के अनुसार वर्तमान में मनाई जाने वाली दही हांडी का इतिहास हमें नवी मुंबई के घणसोली गांव में मिलता है। कहा जाता है कि इस गांव में दही हांडी आज से लगभग 110 वर्ष पहले 1907 में सबसे पहले मनाई गई थी। तब से यह परंपरा चली आ रही है और यहां से अलग-अलग क्षेत्रों में इसका विस्तार हुआ है। यहां के हनुमान मंदिर में जन्माष्टमी से एक हफ्ते पहले उत्सव मनाए जाने लगते हैं इसके बाद यह उत्सव दही हांड़ी से साथ समाप्त होते हैं। यही कारण है कि श्री कृष्ण के जन्मदिन पर दही हांडी फोड़ने की प्रथा चली आ रही है।
क्या होता है दही हांडी में
दही-हांडी प्रतियोगिता में युवाओं का एक समूह पिरामिड बनाता है, जिसमें एक युवक ऊपर चढ़कर ऊंचाई पर लटकी हांडी, जिसमें दही होता है, उसे फोड़ता है। ये गोविंदा बनकर इस खेल में भाग लेते हैं। इस दौरान कई जगहों पर प्रतियोगिताओं का भी आयोजन होता है। प्रतिभागियों को 9 स्तरों से नीचे आमतौर पर मिलकर एक पिरामिड बनाते हैं और हांडी को तोड़ने के लिए 3 मौके दिये जाते हैं। इन प्रतियोगिताओं में जीतने वाली टोली को इनाम में पैसे, मिठाई और उपहार दिए जाते हैं। विभिन्न संगठन दही हांडी में लाखों तक का इनाम देते है। साथ ही विभिन्न जगहों पर दही हांडी से मिलने वाला पैसा सामाजिक कार्यों में दान दिया जाता है। दही हांडी आज के दौर में इतनी प्रचलित हो चली है कि बॉलीवुड में इस पर अनेक गाने बन चुके हैं। जिनकी ताल पर आज हजारों लोग झूमते हैं।
बता दें कि इस उत्सव को मनाने की तैयारियां 3 महीने पहले से ही शुरू हो जाती हैं। पिरामिड बनाने का अभ्यास भी 3 महीने पहले से शुरू हो जाता है। इसमें भाग लेने वाले गोविंद अपने आप को फिट रखने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। वहीं पिरामिड बनाने से पहले सभी जरूरी बातों का ध्यान रखा जाता है। किसी भी तरह की मेडिकल एमरजेंसी से निपटने के मौके पर एंबुलेंस रहती है।
देशभर में प्रचलित है यहां कि दही हांडी
मुंबई के कुछ प्रमुख गोविंदा पथकों में ऐरोली कोलीवाडा मंडल, ओमसाईं गोविंदा पथक, शिव गर्जना गोविंदा पथक, गोठिवली गोविंदा पथक हैं। यह टोलियां न केवल यहां बल्कि देशभर में काफी प्रचलित हैं। मुंबई ही नहीं, ठाणे, नवी मुंबई, डोंबिवली, कल्याण, उल्हासनगर, मीरा-भाईंदर, वसई-विरार तक दही हांडी उत्सव का आयोजन होता है। मुंबई के वरली में विशेष इंतजाम रहते हैं, तो उपनगरीय इलाकों में घाटकोपर, चेंबूर, अंधेरी, बोरिवली में गोविंदा टोलियों का स्वागत किया जाता है। यदि आप भी दही हांडी का आनंद लेना चाहते हैं तो इन जगहों पर पहुंच कर इनका आनंद ले सकते हैं।