मैं अहम है। हम सामूहिकता है। मैं अकेला चलता है। सामूहिकता सबको साथ लेकर चलती है। मैं कुछ समय के लिए ठीक हो सकता है, लेकिन सामूहिकता हमेशा के लिए अच्छी होती है। मैं रिश्तों को तोड़ता है। हम रिश्तों को जोड़ता है। मैं और हम शब्द के पीछे शक्ति को पहचानिए जिंदगी आसान हो जाएगी।
भावना पर टिका है पूरा दारोमदार
मैं और हम में फर्क भावना का है। मैं केवल स्वयं को संतुष्ट करता है, जबकि हम सबको संतुष्ट करता है। वर्तमान में हम खो गया है और मैं चौतरफा हावी है। मैं की भावना रिश्तों में खटास पैदा करती है। इसे जितनी जल्दी हो सके उतना जल्दी दूर कर दिया जाना चाहिए। यह अलगाव की भावना को पैदा करता है। दूसरी तरफ हम की भावना कड़ी से कड़ी को जोड़ती है। मैं पतन की ओर ले जाता है तो हम प्रगति की ओर।
परिवार से पैदा होती है मैं और हम की भावना
मैं और हम की भावना के बीज परिवार के संस्कारों से पड़ते हैं। जिस परिवार के लोगों में मैं यानी अहम का भाव होगा वहां की नई पीढ़ी भी उसी का अनुसरण करेगी। वहीं जिस परिवार में हम का भाव होगा वहां की नई पीढ़ी उसे ग्रहण करेगी। मैं की भावना बच्चे को दुनिया में अलग-थलग करती है। यह उसके विकास में बाधक है। मैं की भावना बच्चे में जलन का भाव भी पैदा करती है। लिहाजा बच्चों में मैं की भावना ना पनपने दें। उसमें हम की भावना का विकास करें।
कैसे करें हम की भावना पैदा
बच्चों में हम की भावना पैदा करने के लिए कोई विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है। बल्कि हमारे छोटे-छोटे कार्यों और बातों से ही उनमें हम की भावना पैदा हो सकती है। बच्चों में सामूहिकता का भाव जगाने के लिए जरूरी हैं कि परिवार के सदस्य स्वयं प्रत्येक कार्य में सामूहिक सहभागिता को बढ़ावा देवें। एक दूसरे के कार्य में हाथ बंटाएं। छोटे से छोटे कार्य में राय मशविरा करकें उसे अंजाम दें। एक बार बच्चे के मन में यह बात बैठ गई कि सामूहिकता से श्रेष्ठ कुछ नहीं है तो वह घर के बाहर भी उसे अपने पर लागू करेगा। बाहर अगर वह इस दूसरों के साथ व्यवहार में लाएगा तो निश्चित तौर पर उसकी प्रगति की राह आसान होगी। क्योंकि यह निश्चित है कि हर अच्छी और बुरी चीज घर से ही शुरू होती है।
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