एक बार एक जंगल में कुछ मेंढक रहते थे। एक बार जंगल के कुछ जानवरों नें सोचा क्यों ना इन मेंढकों की दौड़ कराई जाये। दौड़ प्रतियोगिता के अनुसार उन्हें एक मीनार (Tower) के ऊपर चढ़ना था जो उस मीनार की चोटी पर सबसे पहले पहुँचेगा वही विजेता होगा।
मेंढकों की दौड़ प्रतियोगिता के अवसर पर जंगल के सभी जानवर आये। वैसे तो इस दौड़ प्रतियोगिता में किसी भी दर्शक को यह विश्वास नहीं था कि कोई भी मेंढक मीनार की चोटी तक पहुँच पायेगा।
लोगों के मुह से अजीब-अजीब बातें निकलने के लिए सबको कोई सुन रहा था कोई कहता था...
"यह तो असंभव ही लग रहा है"
"कोई भी मीनार की चोटी तक पहुंच नहीं"
"यह तरीका बहुत ही कठिन तरीका है"
दौड़ शुरू किया - दर्शक चिल्लाती लगे। सभी मेंढक मीनार की चोटी की ओर चढ़ाई शुरू हुई। कुछ मेंढक तो शुरू में ही गिरने लगे। यह देखकर लोग और अधिक कहने लगे कि "अब कोई भी इस प्रतियोगिता में सफल नहीं होगा" धीरे-धीरे ऊपर चढ़ते हुए मेंढक थकते गए और हार मानकर एक के बाद गिरने लगे। दर्शक को देखकर अचम्भे में जा रहा था कि एक मेंढक दौड़ में ऊपर चढ़कर ही चला जा रहा है और बिना हार माने कुछ ही समय में वह मीनार की चोटी तक पहुँच गया।
उस छोटे मेंढक के चोटी पर पहुँचने की बात पर बाकि मेंढक और दर्शक हैरानी में पद गए। वह उस छोटे से फॉग से प्रश्न किया कि आखिर वह ऐसा करने में सफल हो रहा है? इसके बाद जो सबको पता चला वह बहुत ही अजीब बात थी कि उनको पता चला कि वह मेंढक "बहरा" था।
कहानी का नैतिक
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जिस तरह दूसरे मेंढकों को दर्शकों के बारे में नकारात्मक बातें सुनना नहीं हो सकता है, अपने लक्ष्य को किसी भी तरह से भीतर से सोचने और इसे अपना लक्ष्य प्राप्त करना विफल हो सकता है। लक्ष्य को नहीं पा सकने की भावना जागृत नहीं करना चाहिए साथ ही हमें भी नकारात्मक सोच और विचार वाले लोगों के सामने अपने दोनों कानों को बंद करना चाहिए। परन्तु वह छोटा मेंढक जो सफल हुआ, जो उस मीनार की चोटी तक पहुँच पाया बिना गिरा उसकी यह खासियत थी कि उसके बहरा होने के कारण वह लोगों की बेकार बातों को सुने बिना अपने लक्ष्य तक पहुँच सका।