दोस्तों हम अपने जीवन में कभी कभी इतना क्रोध करते है कि हम अगले व्यक्ति क्या बोल रहे है हमे खुद को पता नही होता, जो कि हमे नही बोलना चाहिए। मैं इसी बात पर एक छोटी सी कहानी बताने जा रहा हूँ तो आप सभी इस कहानी को ध्यान से पढ़िए और पसंद आये तो शेयर करना न भूलिएगा।
एक समय की बात है जब एक किसान ने एक अपने पड़ोस में रहने वाले व्यक्ति को क्रोध में आकर भला-बुरा कह दिया। लेकिन जब किसान को अपनी गलती का अहसास हुआ तो वो एक संत बाबा के पास गया उसने संत से पूछा - बाबा मैंने अपने पड़ोसी को भला बुरा कह दिया अब मैं अपने शब्द वापस कैसे लू?
फिर संत ने कहा - तुम बहुत सारे सूखे पत्ते इकठ्ठे करो और बीच सड़क पर रख दो। फिर किसान ने ऐसा ही किया जैसा संत ने बोला और फिर वो संत पास पहुंच गया।
फिर संत बोला दुबारा जाओ और सारे सूखे पत्ते एकत्रित कर के लाओ लेकिन यह काम किसान नही कर पाया क्योंकि जब तक सारे पत्ते इधर उधर उड़ गए थे जो कि एकत्रित करना नामुमकिन था। किसान खाली हाथ संत का पास पहुचा और उसने बताया बाबा सारे पत्ते उड़ चुके थे इसलिए मैं पत्तो को एकत्रित नही कर सका। फिर संत कहा ठीक ऐसा ही तुम्हारे द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता है तुम अपने मुख से भला बुरा शब्द बोल तो देते हो मगर तुम चाहकर भी शब्द को वापस नही ले सकते।
शिक्षा -
कुछ भी कड़वा बोलने से पहले ये याद रखें कि भला-बुरा कहने के बाद कुछ भी कर के अपने शब्द वापस नहीं लिए जा सकते। हाँ, आप उस व्यक्ति से जाकर क्षमा ज़रूर मांग सकते हैं, और मांगनी भी चाहिए, पर मनुष्य का स्वभाव कुछ ऐसा होता है की कुछ भी कर लीजिये इंसान कहीं ना कहीं दुखी हो ही जाता है। जब आप किसी को बुरा कहते हैं तो वह उसे कष्ट पहुंचाने के लिए होता है पर बाद में वो आप ही को अधिक कष्ट देता है। खुद को कष्ट देने से क्या लाभ, इससे अच्छा तो है की चुप रहा जाए।