भाई और बहन के प्यार का त्योहार है रक्षाबंधन, रक्षा बंधन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस बार रक्षाबंधन 26 अगस्त (रविवार) को मनाया जाएगा। उत्तरी भारत में यह त्यौहार भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित है और इस त्यौहार का प्रचलन सदियों पुराना बताया गया है। इस दिन बहने अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती हैं और भाई अपनी बहनों की रक्षा का संकल्प लेते हुए अपना स्नेहभाव दर्शाते हैं। त्योहारों की वजह से भारत को त्योहारों और उत्सव की धरती भी कहा जाता है।

रक्षा बंधन का शाब्दिक अर्थ हुआ रक्षा का बंधन। भाई अपनी बहन को हर मुश्किल से रक्षा करने वचन देता है। बहनें अपने भाई की लंबी आयु की कामना करती हैं। इसे राखी पूर्णिमा के तौर पर भी जाना जाता है। यह त्योहार हिंदू चंद्र कैलेंडर के सावन माह में पूर्ण चंद्र के दिन होता है, जिसे पूर्णिमा कहा जाता है। राखी एक धर्मनिरपेक्ष त्योहार है। इसे पूरे देश में मनाया जाता है। राज्य, जाति और धर्म कोई भी हो, हर व्यक्ति इसे मनाता है। भारत के अलावा राखी मॉरीशस और नेपाल में भी मनाई जाती है।
जानकारों कि माने तो रक्षाबंधन का इतिहास काफी पुराना है, जो सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा हुआ है। असल में रक्षाबंधन की परंपरा उन बहनों ने डाली थी जो सगी नहीं थीं, भले ही उन बहनों ने अपने संरक्षण के लिए ही इस पर्व की शुरुआत क्यों न की हो, लेकिन उसकी बदौलत आज भी इस त्योहार की मान्यता बरकरार है।
वहीं रक्षाबंधन एक ऐसा त्योहार है जिसका इतिहास करीब 6 हजार साल पुराना है, रक्षाबंधन की शुरुआत का सबसे पहला साक्ष्य रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं का है। मध्यकालीन युग में राजपूत और मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था, तब चित्तौड़ के राजा की विधवा रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख हुमायूं को राखी भेजी थी। तब हुमायू ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था।
रक्षाबंधन का दूसरा इतिहास भगवान कृष्ण और द्रोपदी से जुड़ा हुआ है। जब कृष्ण भगवान ने राजा शिशुपाल को मारा तो युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएं हाथ की उंगली से खून बह रहा था, इसे देखकर द्रोपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की उंगली में बांध दिया, जिससे उनका खून बहना बंद हो गया।
माना जाता है कि तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन मान लिया। द्रोपदी को बहन मानने की वजह से ही भगवान कृष्ण ने अपनी बहन की रक्षा उस समय की जब किसी ने उनका साथ नहीं दिया था। जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था, तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी।
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रक्षा बंधन का शाब्दिक अर्थ हुआ रक्षा का बंधन। भाई अपनी बहन को हर मुश्किल से रक्षा करने वचन देता है। बहनें अपने भाई की लंबी आयु की कामना करती हैं। इसे राखी पूर्णिमा के तौर पर भी जाना जाता है। यह त्योहार हिंदू चंद्र कैलेंडर के सावन माह में पूर्ण चंद्र के दिन होता है, जिसे पूर्णिमा कहा जाता है। राखी एक धर्मनिरपेक्ष त्योहार है। इसे पूरे देश में मनाया जाता है। राज्य, जाति और धर्म कोई भी हो, हर व्यक्ति इसे मनाता है। भारत के अलावा राखी मॉरीशस और नेपाल में भी मनाई जाती है।
जानकारों कि माने तो रक्षाबंधन का इतिहास काफी पुराना है, जो सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा हुआ है। असल में रक्षाबंधन की परंपरा उन बहनों ने डाली थी जो सगी नहीं थीं, भले ही उन बहनों ने अपने संरक्षण के लिए ही इस पर्व की शुरुआत क्यों न की हो, लेकिन उसकी बदौलत आज भी इस त्योहार की मान्यता बरकरार है।
वहीं रक्षाबंधन एक ऐसा त्योहार है जिसका इतिहास करीब 6 हजार साल पुराना है, रक्षाबंधन की शुरुआत का सबसे पहला साक्ष्य रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं का है। मध्यकालीन युग में राजपूत और मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था, तब चित्तौड़ के राजा की विधवा रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख हुमायूं को राखी भेजी थी। तब हुमायू ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था।
रक्षाबंधन का दूसरा इतिहास भगवान कृष्ण और द्रोपदी से जुड़ा हुआ है। जब कृष्ण भगवान ने राजा शिशुपाल को मारा तो युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएं हाथ की उंगली से खून बह रहा था, इसे देखकर द्रोपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की उंगली में बांध दिया, जिससे उनका खून बहना बंद हो गया।
माना जाता है कि तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन मान लिया। द्रोपदी को बहन मानने की वजह से ही भगवान कृष्ण ने अपनी बहन की रक्षा उस समय की जब किसी ने उनका साथ नहीं दिया था। जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था, तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी।
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