गिन लेती है दिन बगैर मेरे गुजारें हैं कितने भला कैसे कह दूं कि माँ अनपढ़ है मेरी.
मैं रात भर जन्नत की सैर करता रहा यारों, सुबह आँख खुली तो सर माँ के कदमों में था.
हजारों गम हों फिर भी मैं ख़ुशी से फूल जाता हूँ, जब हंसती है मेरी माँ तो मैं हर गम भूल जाता हूँ.
पूछता है जब कोई मुझसे कि दुनिया में मुहब्बत अब बची है कहाँ ? मुस्कुरा देता हूँ मैं और याद आ जाती है "माँ".
माँ से रिश्ता कुछ ऐसा बनाया जिसको निगाहों में बिठाया जाए रहे उसका मेरा रिश्ता कुछ ऐसा की वो अगर उदास हो तो हमसे भी मुस्कुराया न जाये.
कुछ लोग कहते है जन्नत से खूबसूरत कुछ भी नहीं शायद उन्होंने कभी अपनी माँ को खुल के मुस्कुराते हुए नहीं देखा होगा.
सबकुछ मिल जाता है दुनिया में मगर याद रखना कि बस माँ-बाप नहीं मिलते मुरझा कर जो गिर गए एक बार डाली से ये ऐसे फूल हैं जो फिर नहीं खिलते.
बच्चों को खिलाकर जब सुलादेती है माँ, तब जाकर थोडा सा सुकोन पाती है माँ, प्यार कहते हैं किसे ? और ममता क्या चीज़ है ?, कोई उन बच्चों से पूछे जिनकी गुज़र जाती है माँ, चाहे हम खुशियों में माँ को भूल जाएँ, जब मुसीबत सर पर आती है तो याद आती है माँ.
हजारो फूल चाहिए एक माला बनाने के लिए, हजारों दीपक चाहिए एक आरती सजाने के लिए हजारों बून्द चाहिए समुद्र बनाने के लिए, पर “माँ “अकेली ही काफी है, बच्चो की जिन्दगी को स्वर्ग बनाने के लिए.
हमारे कुछ गुनाहों की सज़ा भी साथ चलती है हम अब तन्हा नहीं चलते दवा भी साथ चलती है अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है.
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