ख्वाहिशों से नहीं गिरते हैं फूल झोली में
कर्म की शाखा को हिलाना पडता है
कुछ नहीं होता कोसने से अँधेरे को
अपने हिस्से का दीया खुद ही जलाना पडता है।
एक आईने की दुकान की दीवार पर लिखा था
तेरी पहचान ही न खो जाए कहीं
इतने चेहरे न बदल थोडी सी शोहरत के लिए।
जाने क्यूँ अधूरी सी लगती है जिंदगी
जैसे खुद को तेरे पास भूल आया हूँ।
ग़म-ए-हयात ने फ़ुर्सत न दी सुनाने की
चले थे हम भी मोहब्बत की दास्ताँ ले कर।
कभी पत्थर की ठोकर से भी आती नहीं खराश
कभी ज़रा ही बात से आदमी बिखर जाता है।
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