एक परोपकारी राजा और कबूतर की प्रेरणादायक कहानी


पुरुवंश में शिबी नाम के एक महान परोपकारी राजा हो गए. उनके राज्य का नाम उशीनर नगर था जो कि आज के मध्यप्रदेश में है. राजा अपने धर्म आचरण, कर्तव्य पालन और परोपकारी स्वभाव के लिए जाने जाते थे. उनकी ख्याति स्वर्ग में इंद्र तक पहुँच गई थी. एक बार देवराज इंद्र ने उनकी परीक्षा लेने की योजना बनाई.

इस कार्य में उन्होंने अग्निदेव की सहायता ली. देवराज इंद्र ने एक कबूतर का रूप धारण कर लिया और अग्निदेव ने बाज का रूप धरा. वह कबूतर उड़ते उड़ते राजा शिबी की सभा में जा पहुंचा और वहां जाकर वह राजा शिबी के चरणों में गिर गया. कबूतर ने राजा शिबी से कहा कि एक बाज मेरा भक्षण करने के लिए मेरे पीछे पड़ा है. मैं आपकी शरण में आया हूँ कृपया आप मेरी रक्षा करें. राजा शिबी ने उस कबूतर को अपनी शरण में ले लिया और उसके प्राणों की रक्षा करने का वचन दिया.

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उसके बाद वहां पर वह बाज आ जाता है और राजा शिबी से कहता है कि वह कबूतर मेरा भोजन है उसे मुझे दे दो. तब राजा उसे बताते है कि कबूतर अब मेरी शरण में है और उसकी रक्षा करना मेरा धर्म है इसलिए मैं उसे तुम्हे नहीं दे सकता नहीं तो अधर्म होगा.

यह सुनकर वह बाज उत्तर देता है कि मैं अभी भूखा हूँ और में उसे नहीं खाउंगा तो में मर जाऊँगा. कबूतर मेरा भोजन है उसे मुझे ना देकर तुम अधर्म ही कर रहे हो. मैं मर जाउंगा तो मेरे पीछे मेरा परिवार भी मर जाएगा और यह इसका पाप तुम्हे लगेगा. बाज की बातें सुनकर राजा शिबी ने धर्म पूर्वक विचार करके बाज को यह प्रस्ताव दिया कि तुम कबूतर की जगह कबूतर के वजन के बराबर मेरे शरीर के मांस का भक्षण कर सकते हो जिससे तुम्हारी क्षुधा भी मिट जाएगी और कबूतर की रक्षा भी हो जाएगी.

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बाज ने राजा की यह बात स्वीकार कर ली. एक तराजू मंगाया गया और एक पलड़े में कबूतर को बैठाया गया. राजा ने दुसरें पलड़े में अपने शरीर का मांस काटकर डालना शुरू किया. दुसरी तरफ जो कबूतर वाला पलड़ा था वह तनिक भी ऊपर उठ नहीं रहा था. राजा शिबी अपने शरीर का एक एक अंग काटकर उसमे दाल रहे है फिर भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा है.

शिबी की जगह दूसरा कोई और होता तो अपने प्राणों की चिंता करता परन्तु उसने ऐसा नहीं किया. राजा शिबी ने बाज से कहा अब मेरे पास और उपाय नहीं है. तुम मेरे पूरे शरीर का भोजन कर सकते हो और इस तरह अपनी क्षुधा शांत कर सकते हो. उसके बाद राजा शिबी उस तराजू के अंदर ही बैठ गए और अपना पूरा शरीर उस बाज को समर्पित कर दिया.

राजा शिबी के धर्म आचरण को देखकर देवताओं ने आकाश से राजा शिबी पर पुष्पों की वर्षा की. शंखनाद होने लगा और वह कबूतर और बाज अपने मूल स्वरूप में आ गए. देवराज इंद्र और अग्निदेव ने उनकी प्रशंशा की और राजा शिबी के शरीर को पुन: स्वस्थ करके अपने अपने लोक लौट गए.

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