
अंश मिश्रा ने कहा कि उन्होंने 3 फरवरी, 2017 को बिना पैसे के यात्रा शुरू की और राष्ट्रीय राजमार्ग पर चलने वाले वाहनों से लिफ्ट लेते हुए और चालकों और लोगों के सहयोग से बिना पैसे के सफर और भोजन किया। कई लोगों ने इस दौरान पैसों से सहयोग करना चाहा, पर उसने स्वीकार नहीं किया। साथ ही राष्ट्रीय राजमार्ग पर चलने वाले ट्रक चालकों की डॉक्यूमेंट्री तैयार की।
उन्होंने कहा कि यात्रा के दौरान 18 हजार ट्रक चालकों ने उन्हें लिफ्ट दी। साथ ही उनके साथ खाना बनाकर ट्रक के नीचे सोकर रात बिताई। अपना अनुभव बताते हुए उन्होंने कहा कि किसी ने उनके साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं किया।

यात्रा के दौरान होने वाली समस्याओं के सवाल पर उन्होंने कहा कि गुजरात के सूरत में काफी परेशानी हुई। 9 घंटे तक इंतजार करना पड़ा, उसके बाद लिफ्ट मिली। 26 घंटे तक भोजन भी नहीं मिला। तबीयत भी खराब हो गई। सूरत में उन्हें कहीं भी मेहमाननवाजी नजर नहीं आई. इसी तरह केरल में भी अजनबी को लोग स्वीकार नहीं करते हैं। किसी परिचित के यहां रुके मेहमान के विषय में भी जानकारी हासिल करते हैं। यह उनकी सुरक्षा के लिए हालांकि अच्छी बात है।
अंश ने कहा कि यात्रा के दौरान उन्हें चार बार चिकन पॉक्स भी हुआ। पारिवारिक भावुकता को त्यागते हुए वह अपने परिजन और मित्रों के चार विवाहों में शामिल नहीं हो पाए। उन्होंने कहा कि बस्तर बहुत ही सुंदर जगह है। यहां कई लुभावने पर्यटन स्थल हैं, लेकिन बस्तर के साथ जुड़ी माओवाद की समस्या के चलते देश के लोग बस्तर आना नहीं चाहते। अंश ने कहा, मुझे भी परिवार वालों ने बस्तर नहीं जाने की सलाह दी थी, मगर बस्तर आकर किसी तरह की परेशानी या डर का अनुभव नहीं हो रहा है। जो सुना था, उस पर यकीन भी नहीं हो रहा है। बस्तर में पर्यटन उद्योग की अपार संभावनाएं हैं।
अंश ने कहा कि उनकी देश-यात्रा के अनुभव को वह न तो बेच सकते हैं और न ही कोई खरीद सकता है। वह अब जगदलपुर से इलाहाबाद भी बगैर पैसे के ही यात्रा पर निकलेंगे।